भाग १ -
दरबार २०२० की आपातकालीन बैठक अबकी बार अचानक बुलाई गयी। मुख्य न्यायाधीश बीच में तथा चार दायीं ओर एवं चार बायीं ओर विराजित थे। बाहर करोड़ों की तादाद में धरती से आये हुए सितारे न्याय पाने को आतुर थे। वे अत्यंत विचलित थे। सबके मन में एक ही प्रश्न कौंध रहा था कि उन्हें समय से पहले, पूर्व सूचना दिए बगैर यूँ अचानक धरती से उठाकर आकाश के पार क्यों लाया गया है। पृथ्वी पर उनके कई अधूरे काम छूटे हुए थे। बाहर खड़े हुए वे महसूस कर रहे थे कि झुंड के झुंड सितारे अभी भी आते जा रहे हैं।
कुछ आपस में परिचित भी थे। आदत के अनुसार अभिवादन करना चाह रहे थे किन्तु महसूस हुआ कि उनका शरीर तो धरती पर ही छूट गया है। कुछ का क्रिया कर्म हो चुका है। कुछ लाशों के ढेर के बीच पड़े हुए हैं जिनकी शिनाख्त भी संभव नहीं हो पा रही है।
द्वारपाल आश्चर्य चकित था कि इतनी बड़ी संख्या में पहली बार ये सितारे मुख्य न्यायाधीश के दरबार में एकत्रित हुए हैं। अबकी बार का दरबार कुछ अलग तरह का था। पृथ्वी के पाँचो महाद्वीप से बहुत बड़ी संख्या में सितारे दिन रात उड़ कर आ रहे थे। जिनमें अमीर गरीब, गोरे काले, स्त्री पुरुष, बच्चे - जवान - बूढ़े, विभिन्न व्यवसाय के , किसी भी तरह का कोई भेद नहीं था। उनके आने का कारण पृथ्वी पर फैली महामारी ही नहीं अपितु प्राकृतिक आपदा, आत्महत्या, अन्य बीमारियाँ, सड़क, रेल, और विमान दुर्घटनाएं भी थी। सभा की कार्यवाही प्रारम्भ हुई।
मुख्य दरबारी - "श्रीमान ! बाहर पृथ्वी से आये बड़ी संख्या में सितारे उपस्थित हो चुके हैं। उन्हें महाद्वीप अनुसार बुलाया जाए या किसी अन्य श्रेणियों में रखकर आव्हान किया जाए? आदेश दे।"
मुख्य न्यायाधीश - "इस बार हम न्याय पद्धति बदल रहे हैं। चूँकि सितारों की संख्या भी ज्यादा है अतः श्रेणीबद्ध करके भेजा जाए। प्रथम श्रेणी में वे सितारे उपस्थित हो जिन्होंने प्रकृति के पाँचो तत्वों को नुकसान पहुँचाया है तथा समस्त जीव जन्तुओं और निरीह प्राणियों को अपनी तृष्णा का शिकार बनाया है।"
द्वार पे आकर सुचना प्रेषित की गयी। अगला दृश्य भयावह था। 90% सितारे अंदर आने लगे। मन बुद्धि में अपराध बोध कम, अहंकार ज्यादा भरा हुआ था।
मुख्य न्यायधीश एवं अन्य आठ सहायक न्यायधीशों ने उन सबकी और देखा। उनकी धरती पर की गयी क्रिया कलापों की सूची बध्द फाइलों का अध्ययन करने के बाद विचार विमर्श किया।
मुख्य न्यायाधीश - "मैंने धरती पर तुम सबके लिए स्वर्ग, बहिश्त, जन्नत, पैराडाइस जो भी तुम अपनी भाषा में कहते आये हो उसकी रचना की। प्रचुर मात्रा में सब चीज़ें उपलब्ध करायी। किन्तु तुम्हारी लालसा बेलगाम बढ़ती गयी। तुमने जंगल काटकर ऑक्सीजन कम कर दिया। अनावश्यक उद्योग धंधे शुरू करके कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन किया। वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण बढ़ाया, गैर जरुरी सामाजिकता के नाम पर गंदगी फैलाकर धरती को कूड़ा दान बना दिया। तुम्हें सबक सीखाने के लिए प्राकृतिक आपदाएं भी आती रही किन्तु तुमने ना सुधरने की कसम खा ली थी। अपने स्वाद लोलुपता के लिए अनेक प्रकार के जीव जंतु तथा जानवरों का प्रयोग बेहिसाब किया। इसलिए प्रकृति को यह रौद्र रूप दिखाना पड़ रहा है। तुम्हें अपने बचाव में कुछ कहने का मौका दिया जाता है।
अधिकांश सितारे मौन थे, क्योंकि अब उनका अहंकार तिरोहित होता जा रहा था तथा अपराध बोध से वे ग्लानि महसूस कर रहे थे। कुछ सितारों ने आगे बढ़कर कहा, "श्रीमान! हमें अपनी गलती का एहसास हो गया है। वैसे हमारी गलती अक्षम्य है किन्तु फिर भी हमें एक अवसर देने की कृपा करें तो हम फिर से इसे जन्नत बनाने का वादा करते हैं। कृपया हमें फिर से पृथ्वी पर भेजा जाये।"
मुख्य न्यायाधीश - "न्याय की प्रक्रिया विचाराधीन है। निर्णय की प्रतीक्षा करें।"
सहायक न्यायाधीश - "अगली सुनवाई तक के लिए कार्यवाही स्थगित की जा रही है। मुख्य दरबारीजी, द्वारपाल को कहा जाए कि कल सभी प्रकार के व्यसनी सितारों को दरबार में उपस्थित होने का आदेश दें।"
मुख्य दरबारी - "जो आज्ञा श्रीमान।"